दोकलम विवाद के बाद पहली बार चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तिब्बत में हजारों फुट की ऊंचाई पर सैन्य अभ्यास किया।
मंगलवार को किए गए अभ्यास के दौरान चीनी सेना ने दूरदराज के हिमालयी क्षेत्र में अपनी रसद, हथियार सहायता क्षमता और सैन्य-असैन्य एकीकरण रणनीति का परीक्षण किया। इससे पहले अगस्त, 2017 में पीएलए ने 4,600 मीटर की ऊंचाई पर 13 घंटे सैन्य अभ्यास किया था।
विशेषज्ञों ने मंगलवार को किए गए सैन्य अभ्यास की तारीफ करते हुए कहा कि इसमें स्थानीय कंपनियों और सरकार ने भी सहयोग किया। यह सैन्य-असैन्य एकीकरण की राह में बेहतरीन कदम है। चीन ऐसे अभ्यास कर नए दौर की मजबूत सेना बनाने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।
सेना बेहतर कर रही है रसद आपूर्ति क्षमता
अभ्यास की जगह का मौसम और भौगोलिक स्थितियां काफी जटिल हैं। ऐसे में युद्ध क्षेत्रों तक सैनिकों को रसद और हथियार पहुंचाना बहुत मुश्किल होता है। सेना ने इस दुर्गम इलाके में वस्तु आपूर्ति, बचाव कार्य, आपात स्थिति से निपटने और सड़क सुरक्षा के लिए सैन्य-असैन्य एकीकरण की रणनीति अपनाई। कमांड लॉजिस्टिक्स सपोर्ट डिपार्टमेंट के प्रमुख झांग वेंलांग ने बताया कि सेना अपनी रसद आपूर्ति क्षमता को बेहतर कर रही है।
स्थानीय कंपनी ने तत्काल ईंधन आपूर्ति की
वेंलांग ने बताया कि पठार कमांड के तहत सैन्य-असैन्य एकीकरण को परखने के लिए अभ्यास किया गया। सैन्य अभ्यास के दौरान एक स्थानीय पेट्रोलियम कंपनी ने हथियारबंद यूनिट का ईंधन खत्म होने पर तत्काल आपूर्ति की। साथ ही ल्हासा सरकार ने एक दिन के युद्धाभ्यास के बाद सैनिकों के लिए खाने की पूरी व्यवस्था की।
ऊंचे युद्ध क्षेत्र में रसद आपूर्ति बड़ी समस्या
सैन्य विशेषज्ञ सांग झांगपिंग के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि ऊंचाइयों पर लड़े जाने वाले युद्ध में स्थायी रसद और हथियार सहायता बड़ी समस्या होती है। खराब रसद आपूर्ति के कारण ही 1962 के भारत-चीन सीमा विवाद के बाद चीन ज्यादा दिन तक हालात अपने काबू में नहीं रख पाया था। मंगलवार के सैन्य अभ्यास से साफ हो गया है कि सैन्य-असैन्य एकीकरण इस समस्या से निपटने में व्यावहारिक रणनीति बन सकती है।