यूपी में आगरा के ताजमहल से दो किलोमीटर दूर कुआ खेड़ा गांव में अधिकतर लोग जानवर पालते हैं। इससे ऐसा लगता है कि ज्यादातर दूध का व्यवसाय भी करते होंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां के लोग आस-पास के गांवों में दूध दे आते हैं या फिर दान कर देते हैं। जाटव समुदाय की बहुलता वाले इस गांव में शुक्रवार को विश्व दुग्ध दिवस पर लोगों ने एक-दूसरे से दूध बांटकर दुग्ध दिवस मनाया।
इस गांव में लगभग 9,000 लोग रहे हैं और लगभग हर घर में एक गाय जरूर है। गांव वालों के मुताबिक, यहां एक दिन में दुग्ध उत्पादन 30,000 लीटर के आस-पास होता है। कुआ खेड़ा के ग्राम प्रधान राजेंद्र सिंह कहते हैं, ‘हम दूध या तो किसी जरूरतमंद को दे देते हैं या फिर आपस में बांट लेते हैं। हम दूध बेचते नहीं हैं, क्योंकि हमारे यहां इसे अशुभ माना जाता है। हमने सैकड़ों सालों से दूध नहीं बेचा है। जिसने भी दूध बेचने की कोशिश की है, उसने नुकसान ही उठाया है। कई बार तो गाय मर जाने की भी खबर आई है।’
यहां के आस-पास के गांवों के लोग डेयरी बिजनस से अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं। वे गांवों और शहरों में दूध और अन्य प्रॉडक्ट बेचते हैं। दूसरी तरह कुआ खेड़ा के निवासी दूध दान करने में गर्व महसूस करते हैं और कहते हैं कि हम इसके लिए कभी मना नहीं करते हैं। वह कहते हैं कि बाहर से आनेवाले लोगों को भी हम मना नहीं करते हैं।
मैनपुरी के एक स्वास्थ्य केंद्र में काम करने वाले कुआ खेड़ा निवासी डॉ. प्रवीण यादव कहते हैं, ‘यह एक ऐसी परंपरा है, जिसे लोग बदलना नहीं चाहते हैं। कई लोग अन्य व्यवसायों से कमाई करते हैं। दूध बांटने या दान करने से आजीविका पर कोई संकट नहीं आता है बल्कि इससे सामाजिक एकता और बढ़ती है।’